नटनी का बारा, अलवर


नटनी का बारा :

कहा जाता है कि यहाँ पर एक नटनी (जो रस्सी बांधकर एक छोर से दूसरे छोर तक जाया करती थी) हुआ करती थी, जो एक दिन नदी के छोर से दूसरे छोर पर स्थित पर्वत की एक चोटी से दूसरी चोटी तक रस्सी बांधकर एक तरफ से दूसरी तरफ चली गयी ओर ये यात्रा पूरी करने के बाद नीचे आकर वह अपने बच्चे को दूध पिला रही थी तभी उसके मन मे एक चिंता हुई की यदि मैं उपर से चलते समय नीचे गिर जाती तो मेरे बच्चे का क्या होता ओर उसी समय उसकी मृत्यु हो गयी इसी कारण यह नटनी के बारा के नाम से जाना जाता है |


बारा :

बारा यह एक नदी का नाम है ओर इसे रूपारेल नदी के नाम से भी जाना जाता है | यह यमुना नदी की एक सहायक नदी है। इस नदी का उद्गम अलवर जिले के थानागाजी तहसील के टोडी गाँव के पूर्वी ढाल पे स्थित उदयनाथ की पहाड़ी से होता है। यह नदी राजस्थान के दो जिले अलवर और भरतपुर होते हुए उत्तर प्रदेश में प्रवेश करती है और आगरा और मथुरा के बीच यमुना नदी से जुड़ जाती है। रूपारेल नदी 20वीं सदी के प्रारंभिक वर्षों में भरतपुर और अलवर के राज्यों में विवाद की एक वजह रह चुकी है। नदी के जल बंटवारे के विवाद पर सन 1926 में ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार ने अपना फैसला सुनाया। इस फैसले के तहत नटनी बारा का निर्माण कर अलवर और भरतपुर में जल का बंटवारा किया गया। नटनी बारा से गुजरने की वजह से रूपारेल नदी को बारा नदी के नाम से भी जाना जाने लगा। अत्यधिक जंगलों की कटान की वजह से इस नदी का सदानीरा चरित्र 60 का दशक आते आते बदल गया और यह नदी एक बरसाती नदी में बदल गयी। 



रूपारेल नदि का विस्तार : 

रूपारेल नदी का जलागम क्षेत्र 4488 वर्ग किलोमीटर है। कुल लम्बाई 104 किलोमीटर है। इस नदी पर तरुण भारत संघ द्वारा जन सहभागिता से कुल 590 जल संरचनाओं का निर्माण किया गया है। इन संरचनाओं की देखभाल के लिए गाँव विकास संगठन बनाये गए है।



रूपारेल नदी का इतिहास :

रूपारेल नदी 20 वीं सदी के प्रारंभिक वर्षों में भरतपुर और अलवर के राज्यों में विवाद की एक वजह रह चुकी है। नदी के जल बंटवारे के विवाद पर सन 1928 में ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार ने अपना फैसला सुनाया। इस फैसले के तहत नटनी बारा का निर्माण कर अलवर और भरतपुर में जल का बंटवारा किया गया। रूपारेल नदी का प्राकृतिक रास्ता भरतपुर राज्य को जल देते हुए यमुना तक जाता था। अलवर के तत्कालीन राजा इस जल को अपने राज्य अलवर में ही रोके रखना चाहते थे। इस मुद्दे को लेकर दोनों राज्यों में विवाद बढ़ता गया और फिर मामला ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार की लंदन की अदालत में पंहुचा। लंदन में लगने वाली अदालत में ये लड़ाई 4 वर्षो तक चलती रही जिसका निपटारा जनवरी 1928 को हुआ। 

इस फैसले के तहत नटनी का बारा में एक समतल जगह पर एक दीवार खडी की गई और नदी के जल का दो राज्यों में बंटवारा किया गया और फैसले में अलवर राज को नदी के 45 प्रतिशत जल के उपयोग का अधिकार मिला जबकि भारतपुर राज को 55 प्रतिशत जल पर अधिकार दिया गया। अलवर के महाराज चाहते थे की राज्य में बरसने वाला जल राज्य में रुका रहे और रूपारेल नदी में बहकर भरतपुर राज्य को न जाए। इस वजह से उन्होंने सरिस्का के वन को संरक्षित शिकारगाह घोषित कर दिया ताकि क्षेत्र में बरसने वाला जल पहाड़ियों को पोषित कर सके और उसके नीचे के कुंओं में खेती के लिए जल स्तर बना रहे। जनवरी 1928 में जल विवाद के निपटारे के बाद दोनों राज्यों ने संयुक्त उत्सव मनाया जिसमे भरतपुर के महाराज श्री किशन सिंह और अलवर के महाराज श्री जय सिंह शामिल हुए। उत्स्स्व में दोनों राज्यों की जनता ने भी भाग लिया।

रूपारेल नदी के जलागम क्षेत्र में 24 जून 1996 को विकराल बाढ़ आई जो कि नवंबर 1996 तक जारी रही। इस बाढ़ के कारण कृषि योग्य भूमि का एक बड़ा भाग प्रभावित हुआ। बाढ़ की वजह से हजारों लोगों को इस क्षेत्र से पलायन करना पड़ा और लंबे समय तक दूसरे गावों में शरण लेकर रहना पड़ा। तरूण भारत संघ द्वारा किए गए सर्वे में पाया गया कि बाढ़ की वजह से अलवर जिले को 800 करोड़ तथा भरतपुर जिले को 1000 करोड़ का आर्थिक नुकसान सहना पड़ा।

Web Story

1 टिप्पणियाँ

और नया पुराने

Ad

हमारा फेसबुक पेज लाइक करें