तालवृक्ष, अलवर राजस्थान

तालवृक्ष : 

यह स्थान अलवर से 45 किलोमीटर के करीब है, यह स्थान प्रकृति के बीचो बीच अलवर नारायणपुर मार्ग पर स्थित है| इस स्थान पर पक्षियो के भोजन के लिए दाने डाले जाते है, यह एक प्राचिन ओर धार्मिक स्थान है 

इतिहास :

ऐसी मान्यता है कि इस धाम को महान ऋषि मांडव्य ने अपनी तपोस्थली बनाया था।यह पर गंगा माता का प्राचीन मंदिर और उसके नीचे गर्म और ठंडे पानी के कुण्ड बने हुए है,लोगों का मानना है कि गर्म पानी के कुण्ड में नहाने से शरीर चर्म रोग दूर हो जाते है।यहां की सबसे विशेष बात यह है, की महाशिवरात्रि पर शिवालयों में श्रद्धालुओं के द्वारा श्रद्धा के साथ पुजा की जाती है। राजस्थान में शिव मंदिरों का एक विशेष महत्व है। एक ऐतिहासिक शिव मंदिर अलवर जिले में भी स्थित है। जिसकी स्थापना महाभारत काल मे अर्जुन ने की थी। पांडवों ने अपने अज्ञातवास का समय विराट नगर और सरिस्का में गुजारा था। उसी समय अलवर शहर से 45 किलोमीटर दूर ताल वृक्ष में पांडवों ने अपने अस्त्र-शस्त्र छिपाए थे। यहीं अर्जुन ने अपने आराध्य शिव भगवान की पूजा की थी, कहा जाता है कि उस समय अर्जुन ने 7 फीट ऊंचे शिवलिंग की स्थापना की थी।जिसे भूतेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है। यह शिवलिंग आज भी जन-जन की आस्था का प्रतीक है। महाशिवरात्री पर इस मंदिर मे  दिनभर श्रद्धालुओं का आना  जाना लगा रहता है। 

गर्म व ठण्डे पानी के कुण्ड : 

ताल वृक्ष के मुख्य आकर्षण गर्म व ठन्डे पानी के कुण्ड हैं। पहले ये कुण्ड कच्चे थे। नारायणपुर के तत्कालीन महाराजा रामसिंह जी ने इनका जीर्णोद्धार करवाया था। यहां गर्म पानी के कुण्ड में स्नान करने से शरीर चर्म रोग दूर होते हैं। तालवृक्ष में राजपूत कालीन छतरियां भी हैं। जिन पर मुगल शैली के चित्र बने हुए हैं जो आज भी देखे जा सकते हैं।

अस्त्र-शस्त्र :

अज्ञातवास के दौरान पांडवों का ठिकाना मत्स्यनगर था, मत्स्य नगर आज अलवर के नाम से जाना जाता है। पांडवों ने अज्ञातवास के दौरान तालवृक्ष पर ही अस्त्र-शस्त्र छिपाए थे। यहां ताड़ के ऊंचे-ऊंचे वृक्ष हैं, वृक्षों के ऊपर अर्जुन ने शस्त्र रखे थे। विराट युद्ध के दौरान उन्होंने यह शस्त्र यहां से उतारे थे।


एक टिप्पणी भेजें

और नया पुराने

Ad

हमारा फेसबुक पेज लाइक करें