रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान:
यह उद्यान बाघ संरक्षित क्षेत्र है। यह राष्ट्रीय अभयारण्य अपनी खूबसूरती, विशाल रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान भारत के राजस्थान राज्य के सवाईमाधोपुर ज़िले में स्थित है। यह उत्तर भारत के बड़े राष्ट्रीय उद्यानों में गिना जाता है। 392 वर्ग किलोमीटर में फैले इस उद्यान में अधिक संख्या में बरगद के पेड़ दिखाई देते हैं। रिक्षेत्र और बाघों की मौजूदगी के कारण विश्व प्रसिद्ध है। अभयारण्य के साथ-साथ यहाँ का ऐतिहासिक दुर्ग भी पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है। लंबे समय से यह राष्ट्रीय उद्यान और इसके नजदीक स्थित रणथंभौर दुर्ग पर्यटकों को विशेष रूप से प्रभावित करता है। है, यह उत्तर में बनास नदी और दक्षिण में चंबल नदी से घिरा है। इसका नाम ऐतिहासिक रणथंभौर किले के नाम पर रखा गया है, जो पार्क के भीतर स्थित है।
इतिहास:
रणथंभौर उद्यान को भारत सरकार ने 1955 में 'सवाई माधोपुर खेल अभयारण्य' के तौर पर स्थापित किया था। बाद में देशभर में बाघों की घटती संख्या से चिंतित होकर सरकार ने इसे 1973 में 'प्रोजेक्ट टाइगर अभयारण्य' घोषित किया और बाघों के संरक्षण की कवायद शुरू की। इस प्रोजेक्ट से अभयारण्य और राज्य को लाभ मिला और रणथंभौर एक सफारी पर्यटन का प्रमुख केंद्र बन गया। इसके चलते 1984 में रणथंभौर को राष्ट्रीय अभयारण्य घोषित कर दिया गया। 1984 के बाद से लगातार राज्य के अभयारण्यों और वन क्षेत्रों को संरक्षित किया गया। वर्ष 1984 में 'सवाई मानसिंह अभयारण्य' और 'केवलादेव अभयारण्य' की घोषणा भी की गई। बाद में इन दोनो नई सेंचुरी को भी बाघ संरक्षण परियोजना से जोड़ दिया गया। सरकार की जागरुकता बाघों की लगातार घटती संख्या ने सरकार की आँखेंं खोल दी और लम्बे समय से रणथंभौर अभयारण्य में चल रही शिकार की घटनाओं पर लगाम कसी गई। स्थानीय बस्तियों को भी संरक्षित वन क्षेत्र से धीरे-धीरे बाहर किया जाने लगा। बाघों के लापता होने और उनकी चर्म के लिए बाघों का शिकार किए जाने के मामलों ने देश के चितंकों को झकझोर दिया था। कई संगठनों ने बाघों को बचाने की गुहार लगाई और वर्ष 1991 के बाद लगातार इस दिशा में प्रयास किए गए। बाघों की संख्या अब भी बहुत कम है और अभयारण्यों से अभी भी बाघ लापता हो रहे हैं। ऐसे में वन विभाग को चुस्त दुरूस्त होना ही है, साथ ही उच्च तकनीकि से भी लैस होने की ज़रूरत है।
टाइगर्स:
रणथंभौर मे बाघों की सख्या बहुत ज्यादा है। पिछले कई वर्षों से अवैध शिकार और अन्य कई कारणों से रणथंभौर में बाघों की सख्या में गिरावट आई है।भारत सरकार ने 1973 में प्रोजेक्ट टाइगर शुरू किया और पार्क के 60 मील 2 क्षेत्र को बाघ अभयारण्य के रूप में आवंटित किया। यह क्षेत्र बाद में विस्तारित होकर अब रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान बन गया है।1982 में रिजर्व की दर्ज की गई बाघों की सख्या 44 थी। 2005 में, पार्क में 26 बाघ रहते थे।गैर-सरकारी स्रोतों के अनुसार 2008 में रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान में 34 वयस्क बाघ थे, और 14 से अधिक शावक थे। यह वृद्धि मुख्य रूप से अवैध शिकार पर अंकुश लगाने के लिए वन अधिकारियों के निरंतर प्रयासों को जिम्मेदार ठहराया गया था। क्षेत्र के ग्रामीणों को पार्क से बाहर रहने के लिए प्रोत्साहन दिया जा रहा था और रिजर्व में निगरानी कैमरे भी लगाए गए, वे रणथंभौर को सरिस्का टाइगर रिजर्व पुनर्वास कार्यक्रम में भाग लेने के योग्य बनाने में काफी सफल रहे। नर बाघ (दारा) का पहला हवाई स्थानांतरण, रणथंभौर से सरिस्का तक, 28 जून 2008 को विंग कमांडर विमल राज द्वारा एमआई-17 हेलीकॉप्टर का उपयोग करके किया गया था, इस ट्रांसलोकेटेड टाइगर की 15 नवंबर 2010 को जहर खाने से मौत हो गई थी। "झीलों की महिला" के रूप में जानी जाने वाली एक बाघिन शिकार के कारण बहुत कम उम्र में अपने माता-पिता से अलग हो गई थी। मछली की तरह दिखने वाले शरीर पर निशान के बाद युवा बाघिन का नाम मछली रखा गया। उसने तीन मादा शावकों को जन्म दिया, जिनमें से एक का नाम 'मछली-द जूनियर' रखा गया। मछली जूनियर के पिता की अज्ञात बीमारी से जल्दी मृत्यु हो गई, जैसा कि वन अधिकारी फतेह सिंह राठौर ने पुष्टि की। मछली जूनियर ने नर बाघ बंबुराम के साथ संभोग किया और दो शावकों को जन्म दिया, तिरछा कान और टूटी पूंछ। बच्चा उनका पोता माना जाता है। मछली हाल ही में लापता हो गई, जिससे वन अधिकारियों में चिंता बढ़ गई, क्योंकि उसकी उम्र में शिकार करना मुश्किल है।छब्बीस दिनों के बाद वन अधिकारियों ने मछली को देखा और उसका पता लगाया। 20 साल की उम्र में, मछली सीनियर दुनिया की सबसे उम्रदराज जीवित बाघिन थी और अगस्त 2016 में उसकी मृत्यु हो गई। वह दुनिया में सबसे अधिक फोटो खिंचवाने वाली बाघिन का खिताब रखने वाली दुनिया की सबसे प्रसिद्ध बाघिन थी। उन्होंने रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान में दुनिया भर से पर्यटकों के प्रवाह को बढ़ाने में अकेले महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। मछली की बेटी T19 (कृष्णा या यूनिस) रणथंभौर की वर्तमान रानी बाघिन है। 2014 में, उसने स्टार या ज़ालिम (उन दोनों के साथ संभोग करते हुए देखा गया था) के चार शावकों को जन्म दिया, तीन जीवित रहने के साथ, इन शावकों को अब T-84, T-83 और T-85 के रूप में जाना जाता है। वह अब तक दर्ज जंगली वातावरण में सबसे लंबे समय तक जीवित रहने वाली बाघिन बन गई। रणथंभौर की एक अन्य लोकप्रिय बाघिन T39 बाघिन है, जिसे माला या नूर के नाम से भी जाना जाता है। उसका नाम उसके शरीर पर सजावटी मनके जैसी धारियों से आता है। वह बाघिन T-13 से पैदा हुई थी और T-12 से पैदा हुई थी। नवंबर 2016 में, उसे दो शावकों के अपने चौथे कूड़े के साथ देखा गया था। नूर 9 साल की है और उसका बेटा, T72, या सुल्तान, उसके पहले कूड़े से है और लगभग छह साल का है। ब्रोकन टेल को उनके जीवन पर बनी एक फिल्म में अंतरराष्ट्रीय प्रचार मिला था।
पूछे गए प्रश्न और उनके उत्तर:
प्रश्न: रणथंबोर अभ्यारण किसके लिए प्रसिद्ध है?
उत्तर: 'रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान' राजस्थान स्थित प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है। यह अभयारण्य अपनी खूबसूरती, विशाल परिक्षेत्र और बाघों की मौजूदगी के कारण विश्व प्रसिद्ध है।
प्रश्न: रणथंबोर अभ्यारण किस जिले में स्थित है?
उत्तर: सवाई माधोपुर


Beautiful place
जवाब देंहटाएंAmazing
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