बड़नगर, जयपुर राजस्थान

Barnagar, Jaipur

बड़नगर:

जयपुर दिल्ली राष्ट्रीय राजमार्ग पर अरावली की पहाड़ियों के बीच बहने वाली साबी नदी के मैदानी भाग में पावटा के आसपास के क्षेत्र को रतनावतो का सताईसा कहा जाता है जिसमें अमरसर नरेश शेखाजी जी के द्वितीय पुत्र रतना जी के वंशज निवास करते हैं रतनावत शेखावतों के बड़े प्रमुख गांव में से एक बड़नगर जो साबी नदी के किनारे जयपुर से 90 किलोमीटर उत्तर दिशा में स्थित है बड़नगर बैराड़ से उत्तर दिशा में 18 किलोमीटर की दूरी पर बसा है बैराट जो कि पर्यटन की दृष्टि से महत्वपूर्ण है तथा महाभारत कालीन स्थान है महाभारत काल से लेकर गौतम बुद्ध महावीर स्वामी तक के काल के स्मृति चिन्ह यहां पर मौजूद हैं बडनगर गांव में अनेक संतों जुझारू भूमियों व शक्तियों के स्थान मौजूद हैं बडनगर गांव के गौरवपूर्ण इतिहास के बारे में बड़नगर निवासी श्री जगदीश सिंह जी से जानते हैं

साबी नदी के दोनों तटों के ऊपर व अरावली पर्वत श्रंखलाओ की तलेटियो में बसे हुए रत्नावत शेखावतो के 27 गांव जो की अमरसर वाटी का हिस्सा है संवत 1528 चंद्रसेन जी से समझौते के बाद राव शेखा जी को स्वतंत्र शासक माना गया और वो नरेश हुए शेखाजी उसके बाद अमरसर के राजा हुए और उनको पूर्वजों से प्राप्त बरवाड़ा की जागीर आमेर राज्य ने हस्तगीत कर ली इस अमरसर वाटी को अपने बलिदानों द्वारा शेखाजी के वंशजों ने काफी विस्तृत क्षेत्र में फैला दिया उसी विस्तृत क्षेत्र का हिस्सा रत्नावतों का सताईसा आज इस साबी नदी के दोनों तरफ विद्यमान है जहां अनेक गांवो में रत्ना जी के वंशज निवास करते हैं रत्ना जी शेखाजी के दूसरे पुत्र थे और इनके बड़े पुत्र दुर्गा जी जोकि अपने नाना के पास विराजते थे संपूर्ण जिम्मेदारी उनके बाद रत्ना जी के ऊपर थी परंतु रत्ना जी ने अपने पिता की इच्छा का सम्मान करते हुए अपने छोटे भाई रायमल जी को पूर्ण संरक्षण प्रदान किया और इनकी संतति ने भी मनोहरपुर शाहपुरा को जब तक अपने बलिदानों से संरक्षण प्रदान करते रहे रत्ना जी तो जब तक जिंदा रहे तब तक अमरसर में ही विराजते रहे इसी कड़ी में रत्ना जी के दूसरे पुत्र अखेराज जी बड़े पुत्र ऊद्रण जी को खेलना और भौनावास आबाद हुए एवं इन के दूसरे पुत्र अखेराज जी के वंशज कानजी जो की इनके बड़े पुत्र थे कानजी ने सर्वप्रथम संवद 1620 में आतेला राम सिंह जी चौहान से अपने अधिकार में लिया शेखावतो के आने से पहले यह क्षेत्र चौहानों के अधीन था और चौहानों का इस क्षेत्र पर अधिकार था कानजी के बड़े पुत्र पूरणमल जी जिन्होंने पावटा बसाया उन्हीं पूरणमल जी के वंशज उमेद सिंह जी ने पावटा में गढ़ का निर्माण कराया और मुरली मनोहर जी के मंदिर की स्थापना की उस गढ़ को आज भी उम्मेद भवन के नाम से जाना जाता है जो जीण श्रीण अवस्था में आज भी विद्यमान है कानजी जी के दूसरे पुत्र चतुर्भुज जी जिन के वंशज जयसिंह पुरा, बड़नगर, पांचू डाला, बागावास आदि गांव में निवास करते हैं इन चतुर्भुज जी के बड़े पुत्र गोविंद दास जी जिनके वंशज जैसिंगपुरा, बहादरपूरा और सुरजपुरा मे निवास करते है  एवं दूसरे पुत्र विट्ठल दास जी जिनके डूंगर सिंह जी हुए और डूंगर सिंह जी के पुत्र गोपीनाथजी जिन के 3 पुत्र हर रूप सिंह जी बड़े छोटे जोध सिंह जी वह तीसरे पुत्र नाहर सिंह जी गोपीनाथ सिंह जी जयसिंहपुरा ही विराजे जोध सिंह जी सर्वप्रथम बड़नगर की सीमा पर आकर निवास करने लगे जिसे घुढा के नाम से जाने जाना लगा थोड़े दीनो बाद इनके दोनों भाई हर रूप सिंह और नाहर सिंह जी भी वहा आकर विराजे और इस बड़नगर को अपने अधिकार मे ले लिया |

Jodh singh ji

जोध सिंह जी जन्मभर ब्रह्मचर्य रहे उन्होने हर रूप सिंह जी के पुत्र लूणकरण जी को गोद लिया लूणकरण जी ने जोध सिंह जी पर एक छतरी का निर्माण करवाया छतरी जो आज भी विद्यमान है जिसमें रामायण और महाभारत की चित्रकारी की गई है वह छतरी एवं वहां आश्रय लेने के लिए संतों के रुकने के लिए और मकानों का निर्माण करवाया और उसके नीचे कुछ जमीन भी लगाई गई जिससे आने वाले संतों का खर्चा चलता रहे |

गोपीनाथ जी के तीसरे पुत्र नाहर सिंह जी के पुत्र हुए गुलाब सिंह जी और गुलाब सिंह जी के बड़े पुत्र निर्भय सिंह जी उन निर्भय सिंह जी के दो पोतो मे से एक बुद्ध सिंह जी के पुत्र अर्जुन सिंह जी जीन के बड़े भाई के नाम से आज ढाणी दुल्हे सिंह के नाम से करीब रत्नाजी के शेखावत 100 परिवार आबाद है उन धुले सिंह जी के बड़े भाई अर्जुन जी जो कि सताईसा  क्षेत्र की सीमा।आज का जो अलवर राज्य है, उस अलवर राज्य के सीमा से लगता था जहाँ वाल्के शेखावत निवास करते थे। तेज जी के शेखावत उनके साथ में सीमा विवाद पैदा हुआ और उस सीमा विवाद में सभी रचनाओं में से इकट्ठा होकर उसका विरोध किया और वह विरोध झगड़े में परिवर्तित हुआ। उस झगड़े में 84 रत्नावत काम आए। उधर से भी।शेखावत ही काम आए। उन 84 रत्नावतों में से कुछ के नाम आज लोगों की जबान पर है और उनका वर्णन जगह जगह सुनने को मिलता है। 

उस सीमा विवाद पर दुल्हे सिंह जी के बड़े भाई और बुद्ध सिंह जी के पुत्र अर्जुन सिंह जी लड़ते हुए झूंझार के रूप में काम आए। उनका सर कारोली के और बड़ा गांव के बीच में जो युद्ध क्षेत्र था। उस रणक्षेत्र के अंदर सर कटा और वह घोड़े पर बैठ कर के और अपने गांव की तरफ बड़नगर की तरफ रवाना हुए और बड़नगर की सीमा में पहुंचते ही ढाणी दुल्हे सिंह के पास उनका वह धड़ शांत हुआ जहाँ आज भी खाद्य स्थापित है। वो अर्जुन सिंह जी झूंझार के रूप में काम आए

उन्हीं के बाबा के बेटे बिरजू सिंह जी बैरीसाल।सिंह जी के भाई जो जयपुर राज्य की तरफ से सम्पूर्ण सत्ताईसा को सवाई जयसिंह जी के समय जो बादशाह से पट्टा प्राप्त किया 25,00,000 की एवज में और उस कड़ी में इन्होंने शेखावतों को दबाना शुरू किया। जगह जगह युद्ध होने लगे शेखावतो द्वारा विरोध प्रकट किया जाने लगा। इसी विरोध की कड़ी में सवाई प्रतापसिंह जी के समय जब जबरदस्त लगान वसूली के लिए उससे पहले अनेकों बार विरोध हो चूके थे पर इस बार तो नागा साधुओं के सेना के साथ जयपुर राज्य के मुसाहिबों ने एक तोप को लेकर के और बड़नगर गांव को चारों तरफ से घेर लिया। और कच्ची बुर्ज जिसको चौबुर्जा के नाम से जाना जाता है। उस बुर्ज के मुख्य दरवाजे को।तोड़ने के लिए उत्तर की तरफ से बुर्ज से गोले दागे गए। गोलों से सबसे पहले विद्यमान ठाकुरजी सीताराम जी का मंदिर जिसका शिखर बांध टूटा और उसके बाद गेट टूटा। दरवाजा टूटने के बाद बिरजू सिंह जी दोनों हाथों में तलवार लेकर के और दरवाजे से बाहर आकर के नागा साधुओं से युद्धरत हो गए। पीछे से किसी साधु ने उनकी गर्दन पर वार किया और उनका सर वहीं गिर गया। फिर भी वो लगातार युद्ध रहे और इस तरह से युद्ध करते हुए बिरजू सिंह जी उस स्थान से एक किलोमीटर दूर उत्तर की तरफ बढ़ते चले गए। यह दृश्य देख करके और उन्हें साधुओं की उस टुकड़ी के पैर उखड़ गए और वो भाग छूटे। उनका पीछा करते हुए बिरजू सिंह जी का धड़ एक किलोमीटर जाकर के और एक कुएँ पर जाकर शांत हुआ। आज उन बिरजू सिंह झूंझार पर गांव के मध्य में जहाँ उनका सरकटा वहाँ प्राचीन पुराने समय में एक छोटी सी छतरी बनाई गई थी, गुमटी का रूप था, जिसका उसको आज एक होल के रूप में इनके वंशजों ने सुंदर रूप दिया है और जहाँ उनका धड़ शांत हुआ, वहाँ भी एक चबूतरा बना हुआ है। पीपल वृक्ष के नीचे वह चबुतरा बना हुआ है। इस तरह से शेखावतो मैं रत्नावतों ने इस अमरसरवाटी की सीमा को उत्तर में कोटपूतली के पास जहाँ आज गोरधनपुरा ग्राम है, वह चौकी के नाम से विख्यात है। जहाँ चौकी स्थापित थी, वहाँ तक इस सताईसा की सीमा लगती थी और अमरसरवाटी वहाँ तक विद्यमान थी। इधर वाला क्षेत्र के जो तेजी के शेखावत जो नारायणपुर के नीचे समझे जाते थे और वहाँ कारोली से दूर बड़ागांव और कारोली के बीच की सीमा अमरसरवाटी की सीमा समझी जाती थी, जहाँ तक इस सीमा को फैलाने में रत्नावत शेखावतों का विशेष हाथ रहा, 



इस सब झूंझारो और सतियों, भोमीयाओं का इस क्षेत्र में जगह जगह हमे स्थान देखने को मिलते हैं। कुछ के इतिहास ज्ञात है और इससे पूर्व क्षत्रीय कुलों के जो खाप यहाँ पर आबाद थी, उनमें भी कई भोमिया झूंझार और सतिया हुई है। ये स्थान जगह जगह देखे जाते हैं।




इसके साथ इस क्षेत्र पर संतों की विशेष कृपा रही। राठ क्षेत्र में नागलश्याली चौहानो का गांव है,जहाँ एक क्षत्रिय के घर में बाबा कुंदन दास जी पैदा हुए और उन्होंने संन्यास धारण कर लिया। बाबा कुंदन दास जी की विशेष कृपा इस गांव पर हमेशा बनी रही। आज हम सुनते हैं राठ व सताईसा क्षेत्र का कोई भी गांव ऐसा नहीं जहाँ बाबा कुंदन दास जी का पदार्पण नहीं हुआ। उस समय के लोग कहते हैं। चार चार जगह बाबा कुंदन दास जी को एक साथ धुनों पर देखा जाता था। रिश्तेदार जब यहाँ आते वो कहते मने कल इस समय तो बाबा को राठ के फलाने गांव में देखा और बड़नगर के लोग कहते है कल तो बाबा बड़नगर  विराज रहे थे, वो बाबा कुंदन दास जी यहाँ आकर विराज थे। एक ऊंचा टीला, जिस पर आप विराजते खेजड़ी के वृक्ष के नीचे वही एक जाल का वृक्ष है। एक जाट जाति से पूर्व सरपंच कल्याण सहाई जी जिनके पिता जम्मन बाबा से मैने स्वयं ने एक जिसके वो चश्मदीद गवाह है बाबा के धूने पर हम बैठे हुए थे, बाबा के बारे में चर्चाएं चल रही थी। अचानक वो बाबा जम्मन सहाई जी वहाँ आते हैं और बैठ जाते हैं हमारी वार्ता सुनकरके वो कहते हैं, आप लोगो ने तो बाबा को देखा नहीं, मैने बाबा को अपनी आँखों से देखा है और आँखों से उनको देखा ही नहीं। मैं उनके छ।चमत्कारों का चश्मदीद गवाह वो कहने लगे, एक रोज़ वैसे तो बाबा जब भी नगर में पदार्थें सभी जातियों के लोग 15 से 20 हमेशा बाबा के पास बने रहते हैं। उस रोज़ कुछ ठाकुर, कुछ जाट और अन्य जातियों के 15 से 20 लोग हम उस टीले पर बैठे हुए थे। बैसाख का महीना था, अचानक उत्तर की तरफ से एक छोटी सी बादली उठी और वह फेल कर के उसने घटा का रूप ले लिया। हम सारे लोग उठ करके अपनी धोती या जौ का करके अपने अपने घरों की तरफ जाने लगे। अचानक बाबा की रोबदार कड़कती हुई आवाज सुनाई दी , कहा जा रहे हो आप लोग यदि हम भीगेंगे तो तुम्हे भी भीगना पड़ेगा, बैठ जाओ बाबा का ये आदेश होते ही किसी की हिम्मत नहीं जो वहाँ से उठकर चला जाए। थोड़ी देर बाद हम क्या देखते हैं?वो छोटी सी बादली भयंकर घटा का रूप ले कर के और मूसलाधार बरसात में परिवर्तित हो गई। चारों तरफ हमने देखा करीब डेढ़ घंटा तक वो बरसात होती रही। भयंकर मूसलाधार बरसात उस टीले के चारों तरफ घुटनों तक पानी बहता हुआ हमें नजर आ रहा है, परंतु उस टीले पर किसी को एक बूंद नजर नहीं आई जैसे किसी ने छतरी तान दी हो।इस तरह का व्रतांत हमारे सामने उपस्थित था। हम सारे के सारे अचम्भे पड़े हुए थे, ये क्या हो गया? ऐसे थे बाबा कुंदन दास बाबा की कृपा से आप वचन सिद्ध थे, उनकी कही हुई बात सत्य होती थी। आपने कहा कि गांव बड़नगर में यदि आप लोग दो तीन बातों का पालन करते रहोगे तो प्राकृतिक आपदा से कभी इस गांव में फसल नष्ट नहीं होगी और हमने अपने पूर्वजों से सुना है और हम भी देख रहे हैं ऐसा कभी नहीं हुआ। उस समय से आजादी से पहले भी हमारे गांव के अनेक क्षेत्रीय युवक सेनाओं में थे और उसके बाद भी सेनाओं में भर्ती रहे हैं। सेकंड वर्ल्ड वार 65 और 72 की लड़ाइयों में भी इस गांव के लोग विद्यमान रहे हैं, परन्तु यह उन बाबा कुंदन दास जी की कृपा है, जिसकी वजह से आज तक कोई हताहत नहीं हुआ। 

इसी तरह से उत्तर में बड़नगर और कल्याणपुरा की सीमा पर बाबा शंकर दास जी विराज थे। जो भी वचन सिद्ध महात्मा थे वहाँ।ठाकुर जी का मंदिर सीताराम जी का मंदिर विद्यमान है। 

उसी तरह से साबी नदी के पूर्वी तट पर निंबार्क संप्रदाय का संन्यासी साधुओं का धुना विद्यमान है, जहाँ गोपाल जी का मंदिर विद्यमान है। इन सभी के नीचे क्षत्रीयों द्वारा व्यवस्था हेतु जमीनों की व्यवस्था की गई और इसी कड़ी में दक्षिण में बाबाकुनन्दास जी का स्थान। 




व 1983 में सिद्ध धुना अलवर जिला सामदा से गरीबनाथ जी की शिष्य परंपरा में से माधो नाथजी इस गांव में पधारे और इस गांव के ही होकर रह गए। वो पूर्वी छोर पर गांव के आपने एक टीले पर बना धुना स्थापित किया। गांव वालों ने वहाँ झोपड़ी बना दी और उस झोपड़ी में कई दिन तक आप विराजते रहे। एक sc की महिला ने उनको जमीन उपलब्ध करवाई। गांव वालों ने झोपड़ी बनवाई और इसके बाद तो धीरे धीरे बाबा के यहाँ निर्माण कार्य चालू हुआ और वो निर्माण कार्य बाबा के समाने तक चालू ही रहा। पिछले दिनों बाबा माधोनाथ नाथ जी जो कि सामदा की धुनी गरीबनाथ जी की शिष्य परंपरा से थे, उन्होंने वहाँ।अपना स्थान बनाया। आज वहाँ शिवजी का श्रीविग्रह है। परिवार सहित और बाबा का धुंना विद्यमान है और भव्य बगीची जहाँ बैठकर के सभी का मन लगता है का निर्माण हुआ। आज वो विद्यमान है। इस गांव बड़नगर पर संतों, झूंझार, सतियों और भोमियाओ के अनेक स्थान गांव में

मुख्य बस स्टैंड पर सती जी का स्थानविद्यमान है जो अज्ञात हैं, शोध का विषय है। इसी तरह से और भी बहुत से खाघ है, जो खोज का विषय बड़नगर ग्राम प्राचीन ग्राम है। आज जो टीला बना हुआ है 


ये लगता है की यहाँ कोई नीचे पहाड़ि या चट्टान है, ऐसा नहीं है। महाभारतकालीन बावड़ी जिसमें कही भी चूना नहीं लगा हुआ है, बड़े बड़े पत्थरों के द्वारा बनाई गई है।ऐसी इस क्षेत्र में सात बावड़ियाँ हैं, जिनमें से बड़नगर की एक बावड़ी है। दोनों तरफ से सीढ़ियां बनी हुई है। जल स्तर तक पहुंचने के लिए वो पांडवकालीन बावडी बड़नगर गांव में है। आज भी जब ऊपर जहाँ चौबुर्जा जिसकों कहा जाता है वहाँ खुदाई की जाती है तो नीचे 30 फिट तक अनेकों प्राचीन अवशेष प्राप्त होते हैं।ये इस गांव की प्राचीनता को प्रदर्शित करता है।

गांव के विकास में महाजन समाज का पूर्ण योगदान रहा, जिसमे सेठ श्री नागर मल जी के द्वारा राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय की इमारत का निर्माण, राजकीय उच्च प्राथमिक संस्कृत विद्यालय की इमारत का निर्माण राजकीय  कन्या शाला की इमारत का निर्माण एवं धर्मशाला का निर्माण आपके द्वारा करवाया गया और बाद।आपने संन्यास ग्रहण कर दिया। 

गांव में अस्पताल के निर्माण में महाजन समाज का योगदान रहा, जिसमें श्री कल्याण सहाय जी के द्वारा और उनके भाइयों द्वारा अस्पताल की इमारत का निर्माण करवाया गया, जिससे ग्रामीण लाभान्वित हो रहे हैं। 

संघ 1988 में ढाणी दुल्हन में श्री क्षत्रीय युवक संघ के शिविर का आयोजन हुआ। के आखिरी दिन श्री मान महार साहब की प्रेरणा से रत्ना जी की स्मृति में समारोह का आयोजन रखा गया और वह हैं स्मृति समारोह 1992 तक स्मृति समारोह के रूप में मनाया गया। 1993 में रत्नाजी की जयंती का पता चलने के बाद बड़नगर में प्रथम जयंती मनी। उसके बाद सताईसा  क्षेत्र के विभिन्न गांवों में रत्ना जी की जयंती हर वर्ष अनवरत रूप से मनाई जा रही है और वो लगातार जारी है। 

सन 1956 में विश्व प्रसिद्धक्षत्रीयों द्वारा किया गया आंदोलन भू स्वामी आन्दोलन जिसमें राजस्थान के प्रत्येक गांव से क्षत्रीयों ने हिंसात्मक रूप से भाग लिया। इस गांव के भी क्षत्रीय सरदारों ने पूरी भागीदारी उस आंदोलन में निभाई जिसमें सर्व श्री अग्र सिंह जी, श्री कल्याण सिंह जी, श्री दुर्जन सिंह जी, श्री देबू सिंह जी, श्री नाथू सिंह जी ने श्री पृथ्वी सिंह जी घुडा श्री भैरू सिंह जी दुले सिंह की ढाणी आदि क्षेत्रीय सरदारों ने अपनी गिरफ्तारियां दी। आर इस आंदोलन में अपना सहयोग प्रदान किया। 

झूंझार श्री बिरजू सिंह जी की छतरी के निर्माण हेतु पास में जो जमीन उपलब्ध थी, वह श्रीमान बाल सिंह जी के वंशजों के पास थी। तभी भाइयों ने मिलकरअपनी उस जमीन को झूंझार श्री बिरजू सिंह जी की छतरी के लिए श्रीमान पाबूदान सिंह जी, श्री जगदीश सिंह जी, श्री रतिपाल सिंह जी व श्री उदय सिंह जी के द्वारा समाज को दान कर दी गई।

वर्तमान समय में बड़नगर गांव को वैश्विक मंच पर भी विशेष पहचान दिलाई। यहाँ के निवासी श्रीराम सिंह जी ने जिन्होंने भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए।तीन बार एशियन गेम्स व तीन बार ओलंपिक गेम्स में हिस्सा लिया। इसके लिए भारत सरकार के द्वारा श्रीराम सिंह जी को पद्मश्री और अर्जुन अवॉर्ड से सम्मानित किया गया है। इस तरह से श्रीराम सिंह जी शेखावत ने इस गांव का नाम रोशन किया। इसी विषय पर आइए जानते हैं स्वयं श्रीराम सिंह जी से।

Shri Ramsingh shekhawat

मैं श्रीरामसिंह शेखावत मेरा गांव बड़नगर है, जो जिला जयपुर के अंदर आता है और मेरा जो खेल पृष्ठभूमि है उसमें मैंने गाँव मे स्कूल से अपना करियर स्टार्ट किया जो देहात गांव के खेल होते थे उस के हिसाब से। तो स्कूल की तरफ जयपुर जिला खेलने के लिए गए है । और उसके बाद में मैंने आर्मी ज्वॉइन कर ली। फिर मैने सोचा क्यो नहीं व्यक्तिगत कोई खेल किया जाए और आर्मी मे जाने के बाद मैंने वहा एथलेटिक्स 100 और 200 से शुरू करी उसके बाद में।वहाँ जाने के बाद मुझे कोच मोहम्मद इलियास बाबर मिले। उन्होंने कहा कि आपने इंडोर ज्यादा है इसलिए आप 100 और 200 के बजाय आप 400 और 800 करे तो वो आपके लिए ज्यादा अच्छा रहेगा,और उनकी सलाह के हिसाब से। 1968, मे 400मीटर और 1969, मे 800मीटर से स्टार्ट किया और मै नेसनल चैम्पियन होने के बाद मैं। 1970 के एशियन गेम बंकोक थायलैंड मे गया और वहा मुझे 800मीटर के लिए सिल्वर मेडल मिला उसके बाद दूसरा एशियन गेम 1974 तेहरान ईरान मे था वहा मुझे 800मीटर गोल्ड मिला और 4*400मीटर सिल्वर मेडल मिला, उसके बाद तीसरा एशियन गेम मेरा 1978 मे बंकोक थायलैंड मे था वहा पर भी मुझे 800मीटर के लिए गोल्ड और 400मीटर के लिए सिल्वर मेडल मिला | इसी तरह मैंने 3 ही एशियन गेम और 3 ही ओलंपिक खेले है 3 ओलंपिक थे पहला ओलंपिक मेरा 1972 म्यूनिच,जर्मनी मे था, दूसरा ओलंपिक मेरा 1976 मॉन्ट्रियल,कनाडा मे था  , और उसके बाद तीसरा ओलंपिक मेरा 1980 मास्को, रसिया मे था इस तरह मैंने तीन एशियन ओर तीन ओलंपिक खेल कर भारत का रेकॉर्ड 1976 मे मॉन्ट्रियल,कनाडा ओलंपिक मे बनाया जो भारत मे 42 साल तक रहा और 42 साल बाद 1918 मे वह रेकॉर्ड टूटा, श्रीराम सिंह जी को पदम् श्री अवार्ड 1992 में दिया गया था

बड़नगर गांव में सभी जातियों के लोग निवास करते हैं, जिनका शैक्षिक स्तर काफी अच्छा हैं तथा काफी लोग सरकारी सेवाओं में उच्च पदों पर आसीन हैं। सभी लोग यहाँ पर प्रेम और भाईचारा के साथ में रहते हैं।

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