राजा रतन सिंह जी

Raza Ratan Singh Ji

धर्मत युद्ध के वीर योद्धा राठौड़ रतनसिंह जी - जिन्होंने अपने नाम पर रतलाम की स्थापना की थी ! 

रतलाम जो मध्यप्रदेश का एक प्रसिद्ध शहर हैं जहाँ की नमकीन बड़ीं प्रसिद्ध हैं जो वहाँ से गुज़रता हैं अलग अलग तरह की नमकीन लाना नहीं भुलता । 

राजा रतन सिंह:

रतलाम राज्य के संस्थापक थे रतन सिंह जी राठौड़ जो जोधपुर मारवाड़ के अधीश्वर मोटा राजा उदय सिंह जी के पुत्र दलपत सिंह जी जिन्हें जालोर जागीर में मिला था उनके पुत्र हुए वीर महेसदासजी ओर इनके पुत्र थे राजा रतन सिंह जी।

राजा रतन सिंह जी ( 1632-1658 ई. ) बड़े वीर बहादुर ओर स्वाभिमानी थे , जब धर्मत का युद्ध लड़ा जा रहा था तब ये जोधपुर महाराजा जसवंतसिंह जी के साथ ओरंगजेब के विरुद्ध लड़े थे । जब युद्ध चल रहा था तब महाराजा जसवंतसिंह जी बहुत घायल हो गये , अनेक बड़े बड़े मुग़ल सूबेदार साथ छोड़कर ओरंगजेब के साथ हो लियें तब राजपूतों ने महाराजा को युद्ध से निकाल कर मारवाड़ की तरफ़ भेजने का निर्णय किया ,राठौड़ आसकरन ओर महेशदास सूरजमलोत ने जसवंत सिंह जी के घोड़े की बागें पकड़ ली ओर उसे खींच कर युद्ध क्षेत्र से बाहर ले चले।

तब उस युद्ध की बागडोर राजा रतन सिंह जी ने सम्भाली थी। उन्होंने जोधपुर नरेश जसवंत सिंह जी के मुकुट को धारण कर युद्ध मे प्रचण्ड आक्रमण कर राजपूत शूरवीरों के साथ रणक्षेत्र मे वीरगति को प्राप्त हुए ।

इतिहास में बहुत कम वीर हुए हैं जिनकी स्मृति में उनकी वीरता के लियें राजस्थानी साहित्य का श्रेष्ठ काव्य रचना “वचनिका “ओर “रासो” लिखा गया था । “ राठौड़ रतनसिंह जी की वचनिका “ ग्रन्थ जिसकी रचना  खिड़िया जगा ने की थी, तथा “ रतन रासो” की रचना कवि कुंभकर्ण ने  थी ।ये दोनो बहुत रोचक व ऐतिहासिक रचनाए हैं जो धर्मत के युद्ध का बहुत सटीक निष्पक्ष वर्णन प्रस्तुत करती ।

राजा रतन सिंह जी मध्यकालीन भारत के ऐसे राजा थे जिन्होंने अपने नाम से नगर की स्थापना की ओर कूछ वर्षों बाद ही युद्ध भूमि में वीरता को प्राप्त हो गए । उनका राज्य केवल तीस पेतींस वर्ष ही चला ।

आगे चलकर उनके योग्य पुत्रो ने वापस अपने राज्य को प्राप्त किया ओर कई छोटे छोटे ओर राज्य भी बनाये जो मालवा प्रान्त में राठौड़ सत्ता के केन्द्र बने । सीतामाउ रतलाम ओर सैलाना रियासत इनके तीन पुत्रों के वंशजों ने स्थापित की जो 1947 तक रही।

राठौड़ रतन सिंह जी धर्मत गाँव में रण खेत रहे जो बाद में फ़तेहाबाद कहा जाने लगा । वहाँ पर एक चबूतरा बना था जिसे बाद में सैलाना के राजा जसवंत सिंह जी की देख रेख में तीनो राज्य रतलाम सैलाना ओर सीतामाऊ के ख़र्चे से  श्वेत संगमरमर के पत्थर की एक भव्य छतरी बनाई गयी थी ।

जो आज भी उस वीर की याद दिलाती हैं । यह स्थान पूजनिक हैं क्योंकि यहा अनेक वीरो का दाह संस्कार किया गया था जो धर्मत के युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए थे , मुकुंदसिंह हाड़ा अर्जुनसिंह गोड़ ओर फ़तहसिंह जैसे वीर यही इसी मिट्टी में समाये थे ।

राजा रतनसिंह जी के पीछे इनकी चार रानीया रतलाम से पचीस मील उतर - पश्चिम में नीनोर गाँव के तालाब पर सती हुई जहाँ इनकी याद में एक चबूतरा भी बनाया गया था ।

राजा रतन सिंह जी के वंशज रतन सिंघोत जोधा कहे जाते हैं । 

जसवंतस्यघ नृप इक्क सरि ।

रतनस्यंघ मुख अग्र धरि ॥

मधावत कज्जि रतंन मुगत्ति ।

प्रिथी कजि आफलिया असपत्ति।। 

कियै मुख चोल धसै रिण काल । 

रुलै पाय अंत्र गलै वरमाल ।।

वाचनिका राठौड़ रतनसिंघ जी महेसदासोत री .

भारत माता के ऐसे वीर सपूत को नमन !

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