चित्तौड़गढ़ दुर्ग:
चित्तौड़गढ़ दुर्ग भारत के सबसे बड़े दुर्गो में से एक है। यह यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल है। यह दुर्ग मेवाड़ की राजधानी था और वर्तमान में चित्तौड़ शहर में स्थित है। किले के प्रागण में कई ऐतिहासिक महल, द्वार, मंदिर और दो प्रमुख स्मारक टावर हैं। 7 वीं शताब्दी की शुरुआत में, किले को मेवाड़ साम्राज्य द्वारा नियंत्रित किया गया था। 9 वीं से 13 वीं शताब्दी तक, किले परमार वंश का शासन था। 1303 में, दिल्ली के तुर्क शासक, अलाउद्दीन खिलजी ने किले में राणा रतन सिंह की सेना को हराया। 1535 में, गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह ने बिक्रमजीत सिंह को हराया और किले पर कब्जा कर लिया। 1567 में अकबर ने महाराणा उदय सिंह द्वितीय की सेना को हराया। किले के रक्षकों ने हमला करने वाले दुश्मन पर आरोप लगाने के लिए आगे की ओर देखा, लेकिन फिर भी सफल नहीं हो पाए। इन पराजयों के बाद, लोगों ने शक किया, जहां वे निश्चित मौत की उम्मीद करते हुए युद्ध के मैदान में मार्च करेंगे; जबकि महिलाओं के लिए कहा जाता है कि उन्होंने जौहर या सामूहिक आत्मदाह किया था, जिसका एक उदाहरण रानी कर्णावती ने 8 मार्च 1535 ईस्वी को दिया था। शासकों, सैनिकों, महानुभावों, और आम लोगों ने मृत्यु को सामूहिक बलात्कार और गोली चलाने के लिए बेहतर माना, जो कि सल्तनत की सेनाओं के सामने आत्मसमर्पण करने के बाद हुआ था। 2013 में, नोम पेन्ह, चित्तौड़गढ़ किला के नोम पेन्ह में आयोजित विश्व धरोहर समिति के 37 वें सत्र में, राजस्थान के पांच अन्य किलों के साथ, राजस्थान के हिल फॉर्ट्स नामक एक समूह के रूप में एक यूनेस्को विश्व विरासत स्थल घोषित किया गया था।
इतिहास:
चित्तौड़गढ़ में करीब 180 मीटर की पहाड़ी में स्थित यह किला भारत का सबसे विशाल किला है, जिसके निर्माण और इतिहास हजारों साल पुराना माना जाता है।
इस भव्य किले के निर्माण कब और किसने करवाया इसकी कोई पुख्ता जानकारी नहीं है, लेकिन महाभारत काल में भी इस विशाल किले का होना बताया जाता था। इतिहासकारों की माने तो इस विशाल दुर्ग का निर्माण मौर्य वंश के शासकों द्धारा 7वीं शताब्दी में करवाया गया था।
इसके अलावा चित्तौड़गढ़ के इस विशाल किले के निर्माण को लेकर एक किवंदती के मुताबिक इस प्राचीनतम और भव्य किले को महाभारत के भीम ने बनवाया था, वहीं भीम के नाम पर भीमताल भीमगोड़ी, समेत कई स्थान आज भी इस क़िले के अंदर बने हुए हैं।
राजस्थान के मेवाड़ में गुहिल राजवंश के संस्थापक बप्पा रावल ने अपनी अदम्य शक्ति और साहस से मौर्य सम्राज्य के अंतिम शासक को युद्ध में हराकर करीब 8वीं शताब्दी में चित्तौड़गढ़ पर अपना शासन कायम कर लिया और करीब 724 ईसवी में भारत के इस विशाल और महत्वपूर्ण दुर्ग चित्तौड़गढ़ किले की 724 ईसवी में स्थापना की।
चित्तौड़गढ़ दुर्ग पर हुए आक्रमण:
राजस्थान की शान माने जाने वाले चित्तौड़गढ़ के इस ऐतिहासिक किले पर कई हमले और युद्द भी किए गए, लेकिन समय-समय पर राजपूत शासकों ने अपने अदम्य साहस का परिचय देते हुए इस किले की सुरक्षा की।
अलाउद्दीन खिलजी:
1303 ईसवी में अल्लाउद्दीन खिलजी ने इस किले पर आक्रमण किया था। दरअसल, रानी पद्मावती की खूबसूरती को देखकर अलाउद्धीन खिलजी उन पर मोहित हो गया, और वह रानी पद्मावती को अपने साथ ले जाना चाहता था, लेकिन रानी पद्मावती के साथ जाने से मना करने जिसके चलते अलाउ्दीन खिलजी ने इस किले पर हमला कर दिया।
जिसके बाद अपनी खूबसूरती के लिए प्रसिद्ध रानी पद्मिनी के पति राजा रतन सिंह और उनकी सेना ने अलाउद्धीन खिलजी के खिलाफ वीरता और साहस के साथ युद्ध लड़ा,लेकिन उन्हें इस युद्ध में पराजित होना पड़ा।
वहीं निद्दयी शासक अलाउद्दीन खिलजी से युद्द में हार जाने के बाद भी रानी पद्मावती ने हिम्मत नहीं हारी और उन्होंने राजपूतों की शान, स्वाभिमान और अपनी मर्यादा के खातिर इस किले के विजय स्तंभ के पास करीब 16 हजार रानियों, दासियों व बच्चों के साथ ”जौहर” या सामूहिक आत्मदाह किया।
वहीं आज भी इस किले के परिसर के पास बने विजय स्तंभ के पास यह जगह जौहर स्थली के रुप में पहचानी जाती है। इसे इतिहास का सबसे पहला और चर्चित जौहर स्थल भी माना जाता है।
इस तरह अलाउद्दीन खिलजी की रानी पद्मावती को पाने की चाहत कभी पूरी नहीं हो सकी एवं चित्तौड़गढ़ का यह विशाल किला राजपूत शासकों एवं महलिाओं के अद्धितीय साहस, राष्ट्रवाद एवं बलिदान को एक श्रद्धांली है।
बहादुर शाह:
चित्तौड़गढ़ के इस विशाल दुर्ग पर 1535 ईसवी में गुजरात के शासक बहादुर शाह ने आक्रमण किया और विक्रमजीत सिंह को हराकर इस किले पर अपना अधिकार जमा लिया।
तब अपने राज्य की रक्षा के लिए रानी कर्णावती ने उस समय दिल्ली के शासक हुमायूं को राखी भेजकर मद्द मांगी, एवं उन्होंने दुश्मन सेना की अधीनता स्वीकार नहीं की एवं रानी कर्णावती ने अपने अदम्य साहस का परिचय देते हुए करीब 13 हजार रानियों के साथ ”जौहर” या सामूहिक आत्मदाह कर दिया। इसके बाद उनके बेटे उदय सिंह को चित्तौड़गढ़ का शासक बनाया गया।
अकबर:
मुगल शासक अकबर ने 1567 ईसवी में चित्तौड़गढ़ किले पर हमला कर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया। वहीं राजा उदयसिंह ने इसके खिलाफ संघर्ष नहीं किया और इसके बाद उन्होंने पलायन कर दिया, और फिर उदयपुर शहर की स्थापना की।
हालाकिं, जयमाल और पत्ता के नेतृत्व में राजपूतों ने अकबर के खिलाफ अपने पूरे साहस के साथ लड़ाई लड़ी, लेकिन वे इस युद्ध को जीतने में असफल रहे, वहीं इस दौरान जयमाल, पत्ता समेत कई राजपूतों को अपनी जान तक गंवानी पड़ी थी।
वहीं इसके बाद मुगल सम्राट अकबर ने चित्तौड़गढ़ के इस किले पर अपना कब्जा कर लिया और उसकी सेना ने इस किले को जमकर लूटा और नुकसान पहुंचाने की भी कोशिश की। जिसके बाद पत्ता की पत्नी रानी फूल कंवर ने हजारों रानियों के साथ ”जौहर” या सामूहिक आत्मदाह किया।
वहीं इसके बाद 1616 ईसवी में मुगल सम्राट जहांगीर ने चित्तौड़गढ़ के किले को एक संधि के तहत मेवाड़ के महाराजा अमर सिंह को वापस कर दिया। वहीं वर्तमान में भारत के इस सबसे बड़े किले के अवशेष इस जगह के समृद्ध इतिहास की याद दिलाते हैं।
चित्तौड़गढ़ दुर्ग की अनूठी वास्तुकला:
राजस्थान का गौरव माना जाने वाला यह चित्तौड़गढ़ का विशाल दुर्ग करीब 700 एकड़ के क्षेत्रफल में फैला हुआ है। वहीं करीब 13 किलोमीटर की परिधि में बना यह भारत का सबसे विशाल और आर्कषक दुर्गों में से एक है।
चित्तौड़गढ़ में यह किला गंभीरी नदी के पास और अरावली पर्वत शिखर पर सतह से करीब 180 मीटर की ऊंचाई पर बना हुआ है। राजपूतों के शौर्यता का प्रतीक माने जाने वाले इस विशाल दुर्ग के अंदर कई ऐतिहासिक स्तंभ, पवित्र मंदिर, विशाल द्धार आदि बने हुए हैं, जो कि इस दुर्ग की शोभा को और अधिक बढ़ाते हैं।
आपका बता दें कि चित्तौड़गढ़ के इस विशाल किले तक पहुंचने के लिए 7 अलग-अलग प्रवेश द्धार से होकर गुजरना पड़ता है, जिसमें पेडल पोल, गणेश पोल, लक्ष्मण पोल, भैरों पोल, जोरला पोल, हनुमान पोल, और राम पोल आदि द्वार के नाम शामिल हैं। वहीं इसके बाद मुख्य द्धार सूर्य पोल को भी पार करना पड़ता है।
यह ऐतिहासिक और भव्य दुर्ग के परिसर में करीब 65 ऐतिहासिक और बेहद शानदार संरचनाएं बनी हुई हैं, जिनमें से 19 मुख्य मंदिर, 4 बेहद आर्कषक महल परिसर, 4 ऐतिहासिक स्मारक एवं करीब 20 कार्यात्मक जल निकाय शामिल हैं।
इन सभी के अलावा 700 एकड़ क्षेत्रफल में फैले भारत के इस विशाल दुर्ग के अंदर सम्मिदेश्वरा मंदिर, मीरा बाई मंदिर, नीलकंठ महादेव मंदिर, श्रृंगार चौरी मंदिर, जैन मंदिर, गणेश मंदिर, कुंभ श्याम मंदिर, कलिका मंदिर, और विजय स्तंभ (कीर्ति स्तंभ) भी शोभायमान है, जो कि न सिर्फ इस विशाल किले के आर्कषण को और भी अधिक बढ़ा रहे हैं, बल्कि राजपूत वंश के गौरवशाली अतीत को भी दर्शाते हैं।
इसके साथ ही दुर्ग के अंदर बने यह स्तंभ पर्यटकों का ध्यान अपनी तरफ खींचते हैं।
चित्तौड़गढ़ के इस विशाल किले के अंदर मंदिर, जलाशयों और विजय स्तंभों के साथ-साथ कई बेहद सुंदर महल भी बने हुए हैं।
इस किले के अंदर बने राणा कुंभा, पद्धमिनी और फतेह प्रकाश महल इस किले की सुंदरता और आर्कषण को और अधिक बढ़ा रहे हैं। आपको बता दें कि फतेह प्रकाश पैलेस में मध्यकाल में इस्तेमाल किए जाने वाले अस्त्र-शस्त्र, मूर्तियां, कला समेत कई पुरामहत्व वाली वस्तुओं का बेहतरीन संग्रह किया गया है।
इसके साथ ही इस ऐतिहासिक महल के अंदर झीना रानी महल के पास बने शानदार गौमुख कुंड भी इस किले के प्रमुख आर्कषणों में से एक है।
यही नहीं चित्तौड़गढ़ किले के अंदर बने जौहर कुंड का भी अपना अलग ऐतिहासिक महत्व है। इस शानदार कुंड को देखने दूर-दूर से पर्यटक आते हैं। इस किले में बने जौहर कुंड में अपने स्वाभिमान और सम्मान को बचाने के लिए रानी पद्मावती, रानी कर्णाती एवं रानी फूलकंवर ने खुद को अग्नि में न्यौछावर या जौहर ( आत्मदाह ) कर दिया था।
इसके साथ ही भारत के इस ऐतिहासिक और विशाल किले के परिसर में बने शानदार जलाशय (तालाब) भी इस दुर्ग की शोभा बढ़ाते हैं।
इतिहासकारों की माने तो पहले इस किले के अंदर पहले करीब 84 सुंदर जलाशय थे, जिसमें से केवल वर्तमान में महज 22 ही बचे हुए हैं। जिनका अपना एक अलग धार्मिक महत्व है।
भारत के इस विशाल चित्तौड़गढ़ दुर्ग को अगर विहंगम दृश्य से देखा जाए तो यह मछली की आकार की तरह प्रतीत होता है। मौर्यकाल में बने इस शानदार किले को राजपूताना और सिसोदियन वास्तुशैली का इस्तेमाल कर बनाया गया है, जो कि प्राचीनतम कृति का अनूठा नमूना है, साथ ही राजपूतों की अद्म्य शौर्य, शक्ति और महिलाओं के अद्धितीय साहस का प्रतीक है।
चित्तौड़गढ़ किले के अंदर बनी शानदार संरचनाएं:
विजय स्तंभ:
राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले के अंदर बना विजय स्तंभ इस किले के प्रमुख आर्कषण एवं दर्शनीय स्थलों में से एक है। इस स्तंभ को मालवा के सुल्तान महमूद शाह की खिलजी ऊपर जीत के जश्न में बनाया गया था।
इस अनूठी वास्तुशैली से निर्मित विजय स्तंभ को शक्तिशाली शासक राणा कुंभा द्धारा बनवाया गया था। करीब 37.2 मीटर ऊँची इस अद्भुत संरचना के निर्माण में करीब 10 साल का लंबा समय लगा था। विजय स्तंभ की सबसे ऊपरी एवं नौवीं मंजिल पर घुमावदार सीढि़यों से पहुंचा जा सकता है, वहीं इससे चित्तौड़गढ़ शहर का अद्भुत नजारा देख सकते हैं।
कीर्ति स्तंभ:
भारत के इस विशाल दुर्ग के परिसर में बना कीर्ति स्तंभ या ( टॉवर ऑफ फ़ेम ) भी इस किले की सुंदरता को बढ़ा रहा है। 22 मीटर ऊंचे इस अनूठे स्तंभ का निर्माण जैन व्यापारी जीजा जी राठौर द्धारा दिया गया था।
पहले जैन तीर्थकर आदिनाथ को सर्मपित इस स्तंभ को जैन मूर्तियों से बेहद शानदार तरीके से सजाया गया है। इस भव्य मीनार के अंदर कई तीर्थकरों की मूर्तियां भी स्थापित हैं। इस तरह कीर्ति स्तंभ का ऐतिहासिक महत्व होने के साथ-साथ धार्मिक महत्व भी है।
राणा कुंभा महल:
राजपूतों के अदम्य साहस का प्रतीक माने जाने वाले इस विशाल चित्तौड़गढ़ के दुर्ग के परिसर में बना राणा कुंभा महल भी इस किले के प्रमुख दर्शनीय स्थलों में से एक है।
यह अति रमणीय महल विजया स्तंभ के प्रवेश द्धार के पास स्थित है, इस महल को चित्तौड़गढ़ किले का सबसे प्राचीन स्मारक भी माना जाता है। वहीं उदयपुर नगरी को बसाने वाले राजा उदय सिंह का जन्म इसी महल में हुआ था।
राणा कुंभा महल में मुख्य प्रवेश द्धार सूरल पोल के माध्यम से भी घुसा जा सकता है। राणा कुंभा पैलेस में ही मीरा बाई समेत कई प्रसिद्ध कवि भी रहते थे। इस महल में कई सुंदर मूर्तियां भी रखी गई हैं, जो कि इस महल के आर्कषण को और अधिक बढ़ा रही हैं।
रानी पद्मिनी महल:
राजस्थान की शान माने जाने वाले चित्तौड़गढ़ किले का यह बेहद खूबसूरत और आर्कषक महल है। पद्मिनी पैलेस इस किले के दक्षिणी हिस्से में एक सुंदर सरोवर के पास स्थित है। पद्मिनी महल एक तीन मंजिला इमारत है, जिसके शीर्ष को मंडप द्धारा सजाया गया है।
अद्भुत वास्तुशैली से निर्मित यह महल पानी से घिरा हुआ है, जो कि देखने में बेहद रमणीय लगता है।
कुंभश्याम मंदिर:
भारत के इस सबसे विशाल किले के दक्षिण भाग में मीराबाई को समर्पित कुंभश्याम मंदिर बना हुआ है।
राजपूतों की गौरव गाथा की याद दिलाता भारत के इस विशाल दुर्ग के अंदर राजस्थान पर्यटन विभाग द्धारा साउंड और लाइट शो भी शुरु किया गया। वहीं इस शो को देखने दूर-दूर से सैलानी आते हैं।
इस अनोखे साउंड एवं लाइट शो के माध्यम से सैलानियों को इस विशाल चित्तौड़गढ़ दुर्ग के इतिहास के बारे में बताया जाता है। वहीं चित्तौड़गढ़ किले में होने वाला यह शो पर्यटकों का ध्यान अपनी तरफ आर्कषित करता है।
चित्तौड़गढ़ दुर्ग के बारे में रोचक तथ्य:
चित्तौड़गढ़ किला भारत के सबसे बड़े किलों में से एक है, जिसे यूनेस्को द्धारा वर्ल्ड हेरिटेज साईट में भी शामिल किया गया है।
सातवीं शताब्दी में मौर्य शासकों द्धारा निर्मित इस विशाल किले का निर्माण मौर्य शासक चित्रांगदा मोरी के नाम पर चित्तौड़गढ़ पड़ा। वहीं एक प्राचीन समय में इस किले को मेवाड़ की राजधानी माना जाता था।
चित्तौड़गढ़ के इस विशाल और आर्कषक किले का इस्तेमाल 8वीं से 16वीं सदी तक राजस्थान के मेवाड़ पर शासन करने वाले सिसोदिया एवं गहलोत राजवंशों ने अपने निवासस्थान के रुप में किया था।
1568 ईसवीं में भारत के इस सबसे बड़े किले पर मुगल सम्राट अकबर ने अपना कब्जा जमाया था।
करीब 700 एकड़ के क्षेत्रफल में फैले हुए विशालकाय किले के निर्माण को लेकर एक किवंदती यह भी है कि, इस किले का निर्माण हजारों साल पहले द्धापर युग में पांडवों के सबसे शक्तिशाली भाई राजकुमार भीम ने अपने ताकत का इस्तेमाल कर एक ही रात में किया था।
चित्तौड़गढ़ के इस विशाल दुर्ग के परिसर में करीब 65 ऐतिहासिक एवं बेहद शानदार संरचनाएं बनी हुई हैं। जिसमें आर्कषक महल, विशाल मंदिर, सुंदर सरोवर आदि बनाए गए हैं।
इस किले में 7 विशाल और ऊंचे प्रवेश द्धार इस तरह बनाए गए हैं कि, दुश्मनों द्धारा हाथी और ऊंट पर ख़ड़े होने पर भी इस किले के अंदर नहीं देखा जा सकता था।
चित्तौड़गढ़ के इस विशालकाय किले के अंदर करीब 84 बेहद आर्कषक जल निकाय शामिल थे, जिनमें से वर्तमान में सिर्फ 22 ही बचे हैं।
इस विशाल किले के अंदर कई प्रसिद्ध मंदिर, सुंदर महल एवं जलाशयों के अलावा दो प्राचीन स्तंभ कीर्ति स्तंभ और विजय स्तंभ भी बने हुए हैं, जो कि न सिर्फ इस किले के आर्कषण को बढ़ाते हैं, बल्कि राजपूतों के गौरवशाली इतिहास को दर्शाते हैं।
चित्तौड़गढ़ किले के अंदर प्रचीन समय में करीब 1 लाख से भी ज्यादा लोग रहते थे।
180 मीटर ऊंची पहाड़ी पर स्थित भारत के इस विशालकाय दुर्ग में राजस्थान में लगने वाले राजपूतों के सबसे बड़े ”जौहर मेले” का भी आयोजन किया जाता है।
इस किले की भव्यता और आर्कषण को देखकर साल 2013 में इस विशाल किले को यूनेस्कों द्धारा विश्व विरासत की लिस्ट में शामिल किया गया था।
राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले की अरावली पहाड़ी पर स्थित यह विशालकाय किला महिलाओं का प्रमुख जौहर स्थल भी माना जाता था।
जौहर प्रथा, एक प्रकार की सती प्रथा की तरह ही थी, लेकिन इस प्रथा का इस्तेमाल तब किया जाता था,जब कोई सम्राट किसी युद्ध में दुश्मनों से हार जाता था, तब सम्राटों की पत्नियां एवं दासियां विरोधी राजाओं से खुद को बचाने कि लिए एवं अपने, सम्मान, मर्यादा और स्वाभिमान को रखने के लिए खुद को जौहर कुंड की अग्नि में न्योछावर कर देती थी।







